Sunday, January 29, 2012

राजा की तलाश...

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सरिसका जाने के लिए जयपुर से अलवर जब हमारी कार जा रही थी तो सबके मन में सिर्फ एक ही बात थी कि बाघ दिखेंगे या नहीं, इसके पहले जंगल सफारी नहीं की थी, चिडिय़ाघर तो देखे हैं लेकिन खुले बीहड़ जंगल में जानवर किस तरह घूमते फिरते हैं ये नजारा शहरों में रहकर देखने को कभी नहीं मिला। जैसे-जैसे सरिसका तक पहुंचने का रास्ता कम हो रहा था हम सब का उत्साह उतना ही बढ़ रहा था। सरिसका तक पहुंचने से पहले का रास्ता ही जंगल वाला हो गया था, बीच-बीच में हिरण, नील गाय नजर आती, जंगली सूअर भी मस्त होकर यहां वहां घूमते दिखे।

हम सब बस अब जल्दी से जल्दी सरिसका के अंदर पहुंचना चाहते थे। दोपहर के एक बजे की हमारी बुकिंग थी, पहुंचकर हमने अपनी ऑनलाइन एंट्र्री दिखाई और जीप ली। जीप मिलने के पहले तक लग रहा था कि शायद बंद जीप मिलेगी लेकिन महिंद्रा की खुली हुई जीप देखकर हम सबके चहरे खिल गए। सब जीप में सवार हुए और सरिसका के अंदर चले। हसरिसका के गेट से अंदर जीप जैसे ही घुसी लगा कि दूसरी ही दुनिया में पहुंच गए हैं। जंगल के रास्ते पर हमारी जीप बढऩे लगी और हम सब कैमरे इन नजारों को कैद करने लगे। बीच-बीच में ही ड्राइवर से एक ही सवाल कि बाघ कब दिखेगा? हमारी जीप जोन 3 की तरफ से जा रही थी। ड्राइवर ने बताया कि यहां तीन जोन हैं, इस जोन में वह जानबूझ कर लेकर आया है क्योंकि हो बाघ का लोकेशन इधर होने की बात थी। जैसे-जैसे घने जंगल की तरफ जीप बढ़ रही थी बाघ देखने की चाह और बढ़ रही थी। ऊपर से ड्राइवर के किस्से कि कभी तो बाघ फौरन दिख जाता है और कई बार दस बार जंगल सफारी करने पर भी बाघ के दर्शन नहीं हो पाते हैं। ड्राइवर ने बताया कि सरिसका में पांच बाघ हैं जिनमें से हाल ही में एक मर गया है। इन बाघों के नाम एसटी 1, 2, 3, 4, 5 हैं। उसने कहा कि सुबह से जंगल के किसी भी जोन में बाघ नहीं दिखा है तो हो सकता है आपको दिखे। ये बात सुनते ही हम सबके चेहरों पर रौनक आ गई। अचानक छोटे से पगडंडी नुमा चढ़ाई वाले रास्ते पर जीप चढ़ी , रास्ता एकदम खड़ा। फिर ड्र्राइवर ने हिदायत दी कि सब बैठ जाएं और हिले नहीं, अचानक जब ऊंचाई पर जाकर गाड़ी रूकी तो घाटियों का सुंदर नजारा देख सब मुग्ध हो गए। थोड़ी देर रूकने के बाद फिर उसी तेजी के साथ जीप नीचे उतरी, थोड़ी देर के लिए तो सबकी सांसे ही रूक गई थी। अब हम जंगल के बीच में पहुंच चुके थे। ड्राइवर ने अचानक कार रोकी और हमें नीचे जमीन की तरफ इशारा किया और बताया कि यहां से बाघ गुजरा होगा क्योंकि पैरों के निशान हैं फिर जीप को लेकर तेजी से घाटी के पास के रास्ते की ओर बढने लगा। इस बीच हमने खुले जंगल में खेलते, स्वतंत्र होकर घूमते जानवरों को देखा। वाकई में खुले जंगलों में जानवर अलग ही दिखते हैं और इन्हीं जानवरों के चेहरे चिडिय़ा घर एकदम मुरझाए नजर आते हैं। लेकिन जीप से उतर नहीं पाए, जीप से उतरकर फोटो खींचने की मनाही थी। ड्र्राइवर से मैने कौतुहल में पूछा कि कैसे बाघ के आस-पास होने का पता चलता है। इसपर ड्राइवर बोला कि इनकी लोकशन का अब अंदाजा रहता है और अगर बाघ आस-पास ही होता है तो दूसरे जानवर एक अजीब किस्म की आवाज निकालने लगते हैं। इन आवाजों से जानवर दूसरे जानवरों को बाघ के पास होने के बारे में आगाह करते हैं।
अब दिन धीरे-धीरे ढल रहा था और आधा जंगल घूम चुके थे लेकिन हमें कहीं बाघ नहीं दिखा। जंगल के बीच में एक छोटी सी जगह बनाई हुई है जहां जाकर अंदर सफारी करने वाले जीप जाकर रूकते हैं। जीप जैसे ही वहां खड़ी होती है चीं-चीं आवाज करती ढरों पक्षी आकर जीप में बैठ जाते हैं, इन्हें किसी से डर भी नहीं लग रहा था, कू द-कूद कर वह जीप के चारों तरफ खेलने लगी। तभी दो और जीप आकर वहां पर रूकी, उसमें बैठे लोगों के चेहरे बाघ न दिखने की निराशा बता रहे थे। लेकिन हमारे मन में जब भी उम्मीद थी कि शायद अब आगे चलकर हमें कोई बाघ दिख जाए। लेकिन तभी ड्राइवर ने आकर सूचना दी कि बाघ के लोकेशन आज जंगल की तरफ है ही नहीं, बाघ घाटी के पीछे की तरफ चले गए हैं। अब जीप दोबारा जंगल की ओर बढऩे लगी लेकिन कुछ घंटों के बाद हम सब सरिसका से बाहर निकलने वाले थे, सबके चेहरे अब मुरझा गए थे, मन में बस था कि एक बार बाघ दिख जाए, टाइगर रिसर्व में आए और बिना बाघ देखे निकलना बिल्कुल अ'छा नहीं लग रहा था। वापसी के रास्ते में अचानक कुछ तेज-तेज आवाजें आई, ड्राइव ने पूरी स्पीड के साथ जीप को घुमाया और एक बड़े से तालाब के पास जाकर रोक दिया, अचानक मन रोमांच से भर गया, लगा कि शायद बाघ जाने से पहले अपने दर्शन दे ही देगा लेकिन बहुत देर इंतजार करने पर भी निराशा ही मिली।

जानकारी
सरिसका टाइगर रिजर्व राजस्थान के अलवर जिले में पड़ता है। इसे 1955 में वन्य जीव संरक्षण घोषित किया गया और 1978 में इसे टाइगर रिजर्व का स्टेटस दिया गया। सरिसका का जंगल 866 स्क्वेयर किलोमीटर में फैला है। दिल्ली से ये 200 किलो की दूरी में है और जयपुर से 107 किमो है। बड़ी संख्या में लोग यहां घूमने आते हैं, विशेषतौर पर गर्मियों में ज्यादा आते हैं। यूं तो इन दिनों भी जाया जा सकता है लेकिन गर्मियों में बाघ दिखने की संभावना ज्यादा होती है। इस जंगल में बाघ, चीता, चितल, संभार, हिरण, चिंकारा, नील गाय, एंटीलोप, जंगली सूअर के साथ ही पक्षियों की कई प्रजातियां देखने को मिलेंगी। जंगल के अंदर बहुत सारे गांव भी बसे हैं और यहां एक मंदिर भी है। कई पर्यटक सिर्फ इस मंदिर को घूमने के लिए भी यहां आते हैं। यहां तक अपनी गाड़ी में अगर आया जाए तो बहुत अच्छा है। सरिसका तक पहुंचने से पहले रास्ते में बहुत सुंदर नजारे भी देखने को मिलेंगे। वहीं बीच में खाना खाने के लिए ढाबे भी नजर आएंगे, इन ढाबों पर एकदम देसी अंदाज में चारपाई में बैठाकर खाना परोसा जाएगा। बीच में मिडवे भी बने हैं जहां आप चाहें तो रूककर आराम कर सकते हैं।

कैसे करें बुकिंग 
यूं तो सरिसका में पहुंचकर भी वहां पर जीप या कैंटर बुक हो सकते हैं लेकिन छुट्टिïयों के दिनों में यहां बहुत भीड़ बढ़ जाती है, इसके लिए ऑनलाइन बुकिं ग सबसे उपयुक्त होती है। इसमें आप सीधा जाकर अपने मोबाइल में आए मैसेज को दिखाकर अपनी जीप ले सकते हैं। बुकिंग के समय बुकिंग चार्ज ले लिया जाता है और जीप के पैसे ड्र्राइवर को ही देना होता है। यहां सुबह सात बजे से शाम साढे सात बजे तक सफारी होती है। ऑनलाइन बुकिंग में आप अपने मुताबिक समय चुन सकते हैं। ऑनलाइन बुकिंग में सबसे जरूरी और ध्यान रखने वाली बात है कि आप अपना कोई आईडी जरूर लें जो बुकिंग में डाला है और वहां पहुंचने से पहले बुकिंग की डिटेल की कॉपी निकाल लें। जंगल सफारी का मजा जीप पर ज्यादा आएगा क्योंकि कैंटर बड़ा होने के कारण जुगल के खुले रास्तों पर ही चलता है लेकिन जीप आपको हर छोटे बड़े रास्ते पर ले जाएगी।

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