Monday, March 21, 2016

यादों की खिड़की



एक पुराने घर में यादों की खिड़की खोली है. धूल की परतों के बीच भी कभी यहाँ रहने वाले बच्चों का बचपन झाँक रहा है. घर का हर कोना एक कहानी बता रहा है, किसी के प्यार की तो किसी की शरारतों की!
ब्लैक एंड व्हाइट तसवीरें सबकी रंगों से भरी ज़िन्दगी बयां कर रही है. एहसासों में लिपटे पुराने ख़तों में आज भी ताज़गी है. शेल्फ पर रखा तबला मानो कह रहा है कि कभी इसकी ताल से पूरा घर गूंजता था.
खिलौने धूल से सने कोने में पड़े हैं. कमरों में सन्नाटा है. रसोई सूनी पड़ी है. आँगन के झूले में अब सिर्फ चिड़िया झूलती है, लेकिन सालों से बंद इस घर में सफ़ेद गुलाब से पौधा अब भी लदा हुआ है. यहाँ की यादों की हर खिड़की-दरवाज़े को खोल दिया है, जिससे इसकी महक इसके अपनों तक पहुंचे!

तरह-तरह की आवाजों से आज़ाद सुबह

यहां की सुबह शहरों की सुबह से बिल्कुल अलग है. तरह-तरह की आवाजों से आज़ाद, खुली और ताज़गी से भरी हुई. यहां आवाजें हैं हवा के साथ पत्तों के सरकने की, आवाजें चहकती चिड़ि‍यों की, फूलों में मंडराते भंवरों की. इन दिनों यहां एक और हल्की आवाज और सुनाई दे रही है, वो आवाज़ है: महुआ की! 
भोर की ख़ामोशी में महुआ के पेड़ के पास से थोड़ी-थोड़ी देर में एक धीमी-सी आवाज़ सुनाई पड़ती है. महुआ के पके फलों की पेड़ से गिरने की आवाज़. सूरज की रोशनी के साथ ही पेड़ के नीचे दिखती है पीले रंग की एक चादर. खूबसूरत, छोटे, गोल-गोल पीले फलों की चादर, खुशबू से भरे हुए मीठे फल. 
पेड़ों से सभी पत्तियां झड़ चुकी हैं, फल पक कर टपक रहे हैं और लाल-लाल छोटी पत्तियां नए मौसम के आने की ख़बर दे रही हैं!
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